आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र में नखक्षेद अर्थात संभोग के दौरान नाखुनों से खरोंचने और इसमें निहित उसकी उद्दाम काम भावना का वर्णन किया है। वात्स्यान का मत है कि काम वासना जब उफान पर होता है तो स्त्री-पुरुष उत्तेजनावश एक-दूसरे को नोचने-खसोटने से बाज नहीं आते। स्त्री की उत्तेजना और उसका लज्जाजनक स्वभाग उनके नाखुनों के तेज खरोंच और गहरे दबाव से पता चल जाता है। पुरुष भी अधिक उत्तेजना में अपने नाखुनों व दांत का प्रयोग करता है।
संभोग जब उफान पर होता है और स्त्री-पुरुष चर्मोत्कर्ष की ओर बढ़ रहे होते हैं तो उनका एक-दूसरे में समा जाने का भाव बढ़ता चला जाता है। नाखुन एक-दूसरे के शरीर में धंसते चले जाते हैं। बाद में दोनों जब अपने इस निशान को देखते हैं तो उनके अंदर फिर से काम वासना भड़क उठती है। प्रेम और काम की बारंबारता के लिए ऐसे निशानों को आचार्य वात्स्यायन ने जरूरी कहा है।पुरुष और स्त्रियों द्वारा किन अंगों पर नाखुन गड़ाना चाहिए
* संभोग की तीव्र उत्तेजना के क्षण में स्त्रियां अक्सर पुरुष की पीठ पर अपने नाखुन का निशान बनाती हैं। वह चरमोत्कर्ष के समय विह्वल हो उठती है और आनंदविभोर होकर पुरुष की पीठ, गर्दन, कंधे पर अपने नाखुनों को धंसाती चली जाती हैं। कान और होंठ पर भी वह नाखुन व दांत का निशान बनाने से नहीं चूकती।
* वहीं वासनाग्रस्त पुरुष स्त्रियों के स्तन, स्तन के चुचूक, स्तरों के ऊपर की छाती, गर्दन, पेट, जांघ, नितंब, दोनों जांघों के जोड़, पेड़ू और कमर के चारों ओर नाखुनों के निशान बनाता है।
नखक्षत व दांतों के काटने आदि का विधान प्रेम में नयापन लाता है
* आचार्य वात्स्यायन का मत है कि प्रेम में हमेशा नयापन होना चाहिए ताकि प्रेम कभी पुराना न पड़े। एक-दूसरे के प्रति चाहत हमेशा बरकरार रहे। इसीलिए संभोग के क्षण में नित नए-नए प्रयोग करते रहना चाहिए। नखक्षत व दांतों के काटने आदि का विधान प्रेम में नयापन लाता है।
* आचार्य का मत है कि परदेस यात्रा या लंबे समय के लिए बाहर जाने से पूर्व पुरुष-स्त्री गहरे संभोग में उतरें। उस वक्त पुरुष अपनी यादगार के रूप में स्त्री की जंघाओं, योनि व स्तनों पर तीव्र नाखुन का खरोंच लगाना चाहिए। पति के जाने के बाद स्त्रियां जब अपने गुप्त स्थानों पर नाखूनों के निशान देखती हैं तब वह फिर से प्रेम से भर उठती हैं।
लंबे समय तक वियोग रहने के बाद भी यह निशान उन्हें उस रात की याद दिलाता है और उनका प्रेम एक बार फिर से नया हो उठता है। पत्र और आज के समय मोबाइल या फोन के जरिए दोनों उस रात और उस रात पड़े निशान की आपस में चर्चा कर फिर से उस गुदगुदी का अहसास कर सकते हैं। इससे दूरी भी नजदीकी में बदल जाती है। उनका स्पष्ट मत है कि यदि प्रेम की याद कराने वाला नखक्षत नहीं होता तो बहुत समय के लिए बिछड़े हुए प्रेमियों के प्रेम में कमी आती चली जाएगी।
* यदि कोई अपरिचित स्त्री दूर से जब पियाप्यारी उस स्त्री के स्तनों के ऊपर छाती या होंठ पर ऐसे निशान देखती है तो वह समझ जाती है कि यह स्त्री अपने पिया की कितनी प्यारी होगी। हो सकता है उस स्त्री को देखकर उस अजनबी स्त्री के अंदर वासना भड़क उठे और वह भी अपने दांपत्य जीवन में प्रेम के नएपन की ओर अग्रसर हो।
* कोई युवती जब किसी पुरुष के छाती या पीठ पर नाखुनों के ऐसे निशान देखती है तो उसका मन भी चंचल हो उठता है और वह भी अपने प्रेम भरे जीवन में अनोखपन लाने को उतावला हो उठती है।
* आचार्य का स्पष्ट मत है कि वासना के भड़कने पर संभोग के क्षण में उसकी अभिव्यक्ति के लिए नाखूनों से खरोंचने और दांत गड़ाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। प्रेम का यह प्रकटीकरण स्त्री पुरुष को एक-दूसरे के बेहद नजदीक लाता है।
नुकीले और तेज नाखुन उत्तेजना को सही प्रदर्शित करते हैं
कामसूत्र में कहा गया है कि जिन स्त्री पुरुष की काम वासना तीव्र होती है, उन्हें अपने बाएं हाथ के नाखून नोकीले, ताजा कटे हुए, मैल रहित और फटे हुए नहीं होने चाहिए। संभोग का मजा तभी है, जब नाखुन नुकीले, चिकने व चमकीले हों।
महाराष्ट्र की महिलाएं खूब करती हैं नखक्षत का प्रयोग
* आचार्य के अनुसार, गौड़ प्रांत अर्थात मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद एवं पूर्व प्रदेश बिहार, बंगाल आदि की महिलाओं के नाखून बड़े-बड़े, हाथ की शोभा बढाने वाले एवं देखने में मोहक होते हैं।
* दक्षिण भारतीय नारियों के नाखुन छोटे, लेकिन गहरे घाव बनाने लायक होते हैं।
* महाराष्ट्र की स्त्रियों के नाखुन मझोले होते हैं। महाराष्ट्र की महिलाएं संभोग के समय नखक्षत का प्रयोग खूब करती हैं।
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