मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

धात गिरने की समस्या (धातुरोग) और समाधान



धात गिरने की समस्या (धातुरोग)और समाधान


व्यक्तियों में बिना किसी से यौन संबंध बनायें वीर्य के अत्यधिक स्राव का होना धात गिरना, स्पर्मेटोरिया, शुक्राणु रोग या धातु रोग कहलाता है। सरल शब्दों में, यौन क्रिया में शामिल हुए बिना ही  स्खलन होना ‘धातु रोग’ कहलाता है।

यह घटना पेशाब या मल त्याग के दौरान भी देखी जा सकती है। इस स्थिति के साथ लिंग में जलन और कमजोरी जैसे विशिष्ट लक्षण भी आ सकते हैं।

आयुर्वेदिक के अनुसार, "धातु" शारीरिक ऊतक प्रणालियों का प्रतीक है। शरीर के भीतर सात अलग-अलग ऊतक प्रणालियाँ होती हैं, जिन्हें "सप्त धातु" कहा जाता है। प्रजनन ऊतकों की पहचान "शुक्र" (वीर्य) धातु के रूप में की जाती है। सात धातुओं में से, शुक्र धातु सबसे परिष्कृत है और इसमें अन्य सभी धातुओं की सर्वोत्कृष्टता समाहित होती है।


वीर्यपात के कारण


यौन गतिविधियों में कभी-कभार शामिल होने से स्पर्मेटोरिया का विकास हो सकता है।
अत्यधिक शराब का सेवन इस स्थिति की शुरुआत में योगदान कर सकता है।
हस्तमैथुन में अत्यधिक लिप्तता भी एक कारण हो सकता है ।
 
शुक्रमेह या धातु रोग के लक्षण

· वीर्य का अनैच्छिक स्राव,

· बेचैनी, रात में हल्का पसीना,

· अनिद्रा (नींद न आना),

· पेशाब करने में कठिनाई,

· हल्की भावनात्मक गड़बड़ी,

· चक्कर आना,

· ऊर्जा की कमी,

· एकाग्रता में कमी

स्पर्मेटोरिया का तुरंत समाधान करने में विफलता से विभिन्न प्रजनन संबंधी विकारों के साथ-साथ कई शारीरिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो सकती हैं।
धातु रोग या स्पर्मेटोरिया का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद के अनुसार, पुरुषों में पाया जाने वाला घना, सफेद, चिपचिपा पदार्थ शुक्र, प्रजनन में अपनी भूमिका के कारण जीवन के सार का प्रतिनिधित्व करता है।

इसके अलावा, यह मनुष्य की शारीरिक शक्ति, बुद्धि, स्मृति और समग्र रूप को बढ़ाता है। इसलिए, वीर्य की कमी को जीवन शक्ति की हानि, स्मृति में कमी के साथ जोड़ा गया है।

शुक्र धातु में संतुलन बहाल करने के लिए, शमन (शांति) और शोधन (शुद्धि) उपचारों का संयोजन नियोजित किया जाता है।
धातु रोग से राहत पाने के लिए सर्वोत्तम आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेद धातु रोग का समग्र रूप से इलाज करने की वकालत करता है, जिसमें आहार समायोजन, जीवनशैली में बदलाव और विशिष्ट हर्बल उपचार शामिल हैं।

यहां कुछ आयुर्वेदिक औषधियां हैं जो अक्सर धातु रोग के उपचार के लिए निर्धारित की जाती हैं:
 
1. शिलाजीत

शिलाजीत एक चिपचिपा राल जैसा आयुर्वेदिक दवा है जो सहस्राब्दियों से हिमालय के ऊंचे इलाकों में पौधे और सूक्ष्मजीवी मलबे के टूटने से उत्पन्न होता है। इसमें खनिज, फुल्विक एसिड और अन्य लाभकारी पदार्थों की उच्च सांद्रता होती है। शिलाजीत को आयुर्वेद में एक प्रभावी रसायन (कायाकल्प करने वाला) पौधा माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि शिलाजीत शरीर को पुनर्जीवित करता है, सहनशक्ति बढ़ाता है और शक्ति बहाल करता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, सामान्य स्वास्थ्य में सुधार करता है। शिलाजीत में सूजन-रोधी गुण होते हैं, जो प्रजनन प्रणाली में सूजन और दर्द को कम करने में सहायता कर सकते हैं। यह एक कामोत्तेजक है और माना जाता है कि यह प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ाकर यौन प्रदर्शन में सुधार करता है।

2. अश्वगंधा


अश्वगंधा, जिसे अक्सर "इंडियन जिनसेंग" के नाम से जाना जाता है, और ये बिना किसी संदेह के, भारत में स्वप्नदोष की सर्वोत्तम आयुर्वेदिक दवा है। यह कई फायदे प्रदान करता है जो धातु रोग और संबंधित समस्याओं से निपटने में बहुत फायदेमंद हो सकते हैं।

अश्वगंधा एक इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग और पुनर्जीवन देने वाला पौधा है। यह शुक्राणु हानि के इलाज के लिए एक प्रभावी और व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटी है क्योंकि यह पुरुष प्रजनन प्रणाली को बढ़ाती है। यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है और शुक्राणु की गतिशीलता और चिपचिपाहट को भी बढ़ाता है।

यह तनाव और उदासी का मुकाबला कर सकता है, ये दोनों ही स्पर्मेटोरिया के कारण हैं। इसके अलावा, यह पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन के स्तर और प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। इसका सेवन सीधे या तेल, पाउडर या काढ़े के रूप में किया जा सकता है।

3. सफेद मूसली


सफेद मूसली एक पौधा है जिसका उपयोग लंबे समय से कामोत्तेजक और अनुकूलन के रूप में किया जाता रहा है। सफेद मूसली यौन इच्छा और प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली कामोद्दीपक है। यह शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकता है, जो धातु रोग प्रबंधन के लिए आवश्यक है। कहा जाता है कि सफेद मूसली शक्ति को बढ़ाती है।
 
4. गोक्षुरा

गोक्षुरा अपने मूत्रवर्धक और प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले गुणों के लिए एक लोकप्रिय आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। गोक्षुरा अच्छे मूत्र क्रिया को बढ़ावा देता है, जो धातु रोग के इलाज में सहायता कर सकता है। यह स्वस्थ शुक्राणु उत्पादन और गुणवत्ता को प्रोत्साहित करके पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाता है। गोक्षुरा एक कामोत्तेजक है जो यौन इच्छा को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
 
5. चन्द्रप्रभा वटी

चंद्रप्रभा वटी एक आयुर्वेदिक हर्बल फॉर्मूलेशन है जो अपने मूत्र और प्रजनन प्रणाली प्रभावों के लिए पहचाना जाता है। चंद्रप्रभा वटी अच्छे मूत्र क्रिया को बढ़ावा देती है, जो धातु रोग से निपटने के लिए आवश्यक है। यह प्रजनन अंगों को सही ढंग से संचालित करके सामान्य प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
 
6. शतावरी

शतावरी एक टॉनिक है जो गुर्दे संबंधी विकारों के इलाज में बेहद उपयोगी है। यौन दुर्बलता के सबसे प्रचलित कारणों में से एक गुर्दे की बीमारी है। परिणामस्वरूप, रात्रिकालीन उत्सर्जन, यौन दुर्बलता और बांझपन का इलाज करने में इसकी दृढ़ता से सलाह दी जाती है।

यह शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता और जीवन शक्ति को बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है। यह सबसे प्रभावी प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर है। शतावरी को सीधे आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में लिया जा सकता है, या इसे व्यापक रूप से सुलभ हर्बल फॉर्मूलेशन, पाउडर, तेल या काढ़े के रूप में लिया जा सकता है।
 

नेचुरल ट्रीटमेंट फॉर स्पर्मेटोरिया


स्पर्मेटोरिया का इलाज न कराने से बांझपन और विभिन्न यौन विकार हो सकते हैं।

· पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से संतुलित आहार लेने से शुक्राणु रोग के इलाज में पर्याप्त सहायता मिल सकती है।

· यह देखते हुए कि अवसाद और तनाव शुक्राणु रोग के लिए महत्वपूर्ण ट्रिगर हैं ऐसे में ध्यान, योग और नियमित व्यायाम से लाभ होता है ।

· भारत में वीर्यपात को कम करने के लिए कई घरेलू उपचार मौजूद है। इन उपचारों में केसर (केसर), बादाम, काली फलियाँ, अनार का रस और शतावरी की जड़ शामिल हैं।

· शुक्राणु रोग से पीड़ित व्यक्तियों को शराब, धूम्रपान और कड़वे और मसालेदार भोजन से बचना चाहिए।





शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

सेक्स के बाद महिलाओं में नजर आने वाले साइड इफेक्ट


                                     

सेक्स के बाद महिलाओं में नजर आएं ये लक्षण तो जरूर लें डॉक्टर से सलाह


1- योनि में जलन


सेक्स के बाद योनि में जलन महसूस होना किसी इंफेक्शन का संकेत हो सकता है। दरअसल, ल्यूब्रिकेशन की कमी, बर्निंग सेंसेशन का कारण बनने लगते हैं। वेजाइनल टिशूज में आने वाला खिंचाव भी जलन का कारण साबित होता है, जिसे पेनफुल सेक्स भी कहा जाता है। अगर लंबे समय तक इस तरह की समस्या परेशान कर रही है तो डॉक्टरी जांच करवाएं।
 

2- मसल क्रैंप्स


कुछ महिलाओं को सेक्स के बाद मांसपेशियों में ऐंठन बढ़ने लगती है। सेक्स के दौरान मसल्स में खिंचाव बढ़ने से हाथों, पैरों, काफ मसल्स और हिप्स में ऐंठन बढ़ जाती है। ऐसे में सेक्स से पहले पानी पीने से इस समस्या से बचा जा सकता है। इसके अलावा कुछ योगासनों को अभ्यास भी मसल्स क्रैंप के जोखिम को कम कर देते हैं।


3- वेजाइनल इचिंग


सेक्स के दौरान यीस्ट इंफे्क्शन और एसटीआई संक्रमण योनि में खुजली का कारण बन जाते हैं। इसके अलावा स्किन सेंसटीविटी और कण्डोम के इस्तेमाल से भी इचिंग की समस्या बढ़ने लगती है। ऐसी समस्या को दूर करने के लिए सेक्स के बाद वेजाइना को अवश्य क्लीन कर लें।
 

4- स्पॉटिंग


सेक्स के दौरान स्पॉटिंग होना सामान्य लक्षण नहीं है। वेजाइनल टिशू टियर होने या किसी प्रकार के इंफेक्शन से ग्रस्त होने से ये समस्या बढ़ने लगती है। अगर हर बार इस समस्या का सामना करना पड़ता है, तो डॉक्टरी जांच अवश्य करवाएं।


5- मूड स्विंग होना


सेक्स के बाद साइन ऑफ रिलीफ नज़र आता है। इसके बाद रोना और मूड सि्ंवग होना स्वाभाविक है। इसे हैप्पी टियर्स भी कहा जाता है। ऐसी स्थिति को पोस्ट कोईटल डिस्फोरिया कहा जाता है। इसके चलते महिलाएं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाती है। ऐसे में सेक्स के बाद मूड स्विंग होना और रोना पूरी तरह से सामान्य है।





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