आयुर्वेद का उद्भव
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है । विभिन्न विद्वानों ने इसका निर्माण काल ईसा से ३,००० से ५०,००० वर्ष पूर्व तक का माना है । इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है ।
चरक, सुश्रुत, कश्यप आदि ने मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है ।
अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व ३,००० से ५०,००० वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है ।
आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के संदर्भ में सर्वप्रथम ज्ञान का उल्लेख, चरक मतानुसार मृत्युलोक में आयुर्वेद के अवतरण के साथ- अग्निवेश का नामोल्लेख है ।
सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन किया । च्व्ह्न्न ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का समकालीन माना गया है ।
आयुर्वेद के विकास मे ऋषि च्व्ह्न्न का अतिमहत्वपूर्ण योगदान है फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया ।
तदनन्तर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया । इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का,जिसका प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरक संहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार स्तंभ है।
सुश्रुत के अनुसार काशीराज दिवोदास (धन्वन्तरि के अवतार) के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षिर्यों के साथ सुश्रुत जब आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे निवेदन किया । उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।
क्रमशः
अधिक जानकारी के लिए Dr.B.K.Kashyap से सं
पर्क करें 8004999985
Kashyap Clinic Pvt. Ltd.
Website-www.drbkkashyapsexologist.com
Gmail-dr.b.k.kashyap@gmail.com
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अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व ३,००० से ५०,००० वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है ।
आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के संदर्भ में सर्वप्रथम ज्ञान का उल्लेख, चरक मतानुसार मृत्युलोक में आयुर्वेद के अवतरण के साथ- अग्निवेश का नामोल्लेख है ।
सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन किया । च्व्ह्न्न ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का समकालीन माना गया है ।
आयुर्वेद के विकास मे ऋषि च्व्ह्न्न का अतिमहत्वपूर्ण योगदान है फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया ।
तदनन्तर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया । इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का,जिसका प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरक संहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार स्तंभ है।
सुश्रुत के अनुसार काशीराज दिवोदास (धन्वन्तरि के अवतार) के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षिर्यों के साथ सुश्रुत जब आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे निवेदन किया । उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।
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