शुक्रवार, 2 मई 2014

आदतें नहीं बदलेंगे तो रिश्तों से हाथ धो बैठेंगे--------------

तुम अपनी आदतों में कब बदलाव लाने वाले हो..., कब से मैं तुम्हें एक ही बात बार-बार समझा रही हूं, पर तुम हो कि तुम्हें समझ ही नहीं आती...। बाहर का कोई तुम्हें क्यों बताएगा..., अरे... मैं तुम्हारा भला चाहती हूं तभी तो ऐसी बातें करती हूं..., ताकि तुम परफैक्ट बन सको और लोग तुम्हारी तारीफ कर सकें।

इस प्रकार की बातें अक्सर लोग अपने नजदीकी से कहते-सुने जा सकते हैं..., परंतु दूसरे के न मानने से उनकी आवाज की खीझ और सामने वाले की झुंझलाहट भरी आवाज अक्सर सुनी और महसूस की जा सकती है।

रूपा और रिचा ननद-भाभी हैं, उनकी उम्र में भी कोई विशेष अंतर न होने के कारण दोनों में सहेलियों जैसा प्यार है, परंतु अपनी कुछ आदतों के अंतर के कारण इनका आपसी प्यार अक्सर बहस में बदल जाता है। भाभी रूपा को जहां अपनी फिटनैस का बेहद ख्याल रहता है और सुबह जल्दी उठ कर वह जॉगिंग करने चली जाती हैं तथा अपनी डाइट का भी विशेष ख्याल रखती हैं। वहीं रिचा को जॉगिंग और सुबह जल्दी उठने के नाम से ही चिढ़ है और खाने-पीने में भी उसे कोई परहेज या रोक-टोक बिल्कुल पसंद नहीं है।

रिचा का मानना है कि डाइट कांशियस होने की अपेक्षा करियर कांशियस होना जरूरी है, क्योंकि करियर को ऊंचाई पर ले जाने से बेहतर कुछ नहीं। वह अपनी भाभी को भी करियर की तरफ ध्यान देने को हर समय कहती है। दोनों की यह निजी सोच कई बार बहस से तकरार और फिर बड़े विवाद में बदल जाती है। दोनों ही समय-समय पर एक-दूसरे को कमियों का एहसास दिलाते हुए बदलने पर जोर देती नजर आती है।

मकसद नेक
भले ही सामने वाले को बदलने के पीछे आपका मकसद नेक हो, परंतु उसे बार-बार कहने से मकसद कहीं फीका पडऩे लगता है। हालांकि फिटनैस और करियर दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं, परंतु दोनों को लगता है कि सामने वाला जान-बूझ कर उसे बदलने का प्रयास कर रहा है। कब ये छोटी बातें बड़ी बनती चली जाएं और आपसी प्यार की जगह अहं और गलतफहमी ले ले, कोई नहीं जानता।

हर परिवार की कहानी
यह प्रॉब्लम सिर्फ रूपा और रिचा की ही नहीं, बल्कि हर परिवार और रिश्ते में देखने को मिल जाएगी। पिता-पुत्र, सास-बहू, ननद-भाभी, दो दोस्तों और पति-पत्नी का रिश्ता भी इससे अछूता नहीं है। आपसी प्यार और देखभाल की भावना में उलझा हर एक शख्स अपने करीबी लोगों का भला चाहता है और यही भला चाहने की इच्छा कब अति रोक-टोक और आपसी तनाव का कारण बन जाती है, पता ही नहीं चलता।

टूटे न रिश्ता
यदि आप भी अपने किसी करीबी के साथ इसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखें, ताकि आपकी छोटी-छोटी गलतियां भविष्य में रिश्ता टूटने का कारण न बन जाएं। कहते हैं कि कोई भी रिश्ता या इंसान परफैक्ट नहीं होता, उसे आपसी समझ और प्यार से निभाना होता है, इसलिए किसी भी रिलेशन में पहले आपसी प्यार, समझदारी और सामंजस्य को महत्व दें, उसके बाद अन्य बातों बारे सोचें।

न दिखाएं एक्स्ट्रा केयर
यदि अपने करीबी की कोई बात या आदत आप को पसंद नहीं, तो अपना ज्ञान या एक्स्ट्रा केयर दिखा कर उसे लगातार शिक्षा ही न देते रहें। ऐसा करने से आप उसे अपने से दूर तो करेंगे ही, साथ ही रिश्तों में गलतफहमियां भी पैदा होंगी। बेहतर होगा कि उचित मौके पर पूरे संयम से अपनी बात उसके सामने रखें और निर्णय लेने का हक उसी पर छोड़ दें। यदि उसे आपकी बात पसंद आएगी तो वह स्वयं ही उस पर विचार करेगा। तब उसे पूरा समय दें, क्योंकि कोई भी आदत बदलने में समय तो लगता ही है, आपकी जल्दबाजी उसे जबरदस्ती लग सकती है।

यदि आप दूसरों को बुरी आदतों को बदलने की सलाह देने की चाहत रखते हैं, तो हो सकता है कि सामने वाला भी पलट कर उसका जिक्र छेड़ दे, तब आप लकीर के फकीर बन कर अपनी बुरी आदत को गुणों के रूप में न बताएं, इससे रिश्तों पर खतरनाक असर पड़ता है।

छोटी बातों को टालें
छोटी-छोटी बातों को टालने की आदत बनाएं। तौलिया अपनी जगह पर क्यों नहीं रखा, जूते पॉलिश खुद क्यों नहीं करते, खाने के बर्तन टेबल पर क्यों छोड़ दिए या तुम्हारी फाइलें इधर-उधर क्यों बिखरी रहती हैं..., जैसी बातों पर हर रोज की गई तकरार सामने वाले के आपसी तनाव एवं गुस्से की वजह बन जाती है, इसलिए छोटी-मोटी बातों को हर वक्त बहस का विषय न बनाएं।

लें किसी की मदद
यदि आपका कोई करीबी जुए, धूम्रपान या नशे जैसी किसी बुरी आदत का आदी हो गया है और आपकी सीख आपके नाजुक रिश्ते में कड़वाहट ला सकती है, तो फिर आप किसी डाक्टर दोस्त या अन्य नजदीकी रिश्तेदार की इस काम में मदद लें, ताकि आपका काम भी हो जाए और रिश्तों की मिठास भी बनी रहे।

महकती रहे जीवन की बगिया
अपनों के निजी जीवन में व्यर्थ का हस्तक्षेप करने की आदत को छोड़ कर तथा प्यार और संयम से उन्हें बदलने के लिए छोटी-छोटी, परंतु महत्वपूर्ण बातों का यदि ध्यान रखा जाए तो रिश्तों के खूबसूरत फूलों से जीवन की बगिया हमेशा महकती रहेगी। दूसरों को भी एहसास होगा कि आप उन पर अपना निर्णय थोपना नहीं चाहते।

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